Saturday, 2 June 2012

अवचेतन का महत्त्व

उर्दू, हिन्दी, पंजाबी भाषाओं की रचनाओं का एक-दूसरे में अनुवाद करने के लिए सुरजीत का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। परन्तु ‘जीवन को सार्थक बनाएँ’ उनकी स्वरचित मौलिक रचना है। इस बहुमूल्य पुस्तक में मनोविज्ञान को आधार बनाकर- प्रशंसा का जादू, घृणा को जीतिए, उदासीनत:एक रोग, काम टालने की आदत......
इत्यादि अत्यन्त शिक्षाप्रद लेख प्रस्तुत किये गये हैं जो हमारे जीवन के मार्ग को प्रशस्त करने में सहायक सिद्ध होंगे। इन आलेखों के साथ ऐसे विषयों पर भी लेखक ने प्रकाश डाला है, जो हर व्यक्ति के लिए जीवन में विकास और उन्नति करने के लिए प्रेरणादायक सिद्ध होंगे। पुस्तक वास्तव में एक सच्चे पथ प्रदर्शक का काम करती है।
आप भी महान बन सकते हैं
आज से अस्सी वर्ष पहले की बात है, एक साधारण परिवार की ग्यारह वर्षीय लड़का अपने साथी से कह रहा था, ‘‘मैं एक दिन अपने देश का राज्यधिकारी बनूँगा।’’
उसका साथी खिलखिलाकर हँस पड़ा, ‘‘यह कैसे सम्भव है ? तुम कक्षा में सोते रहते हो और ऐसा लगता है कि कक्षा से बाहर तुम सपने देखते रहते हो।’’
‘‘नहीं। नहीं। तुम देख लेना। एक दिन मैं सभी अधिकारों का स्वामी बनूँगा।’’
समय बीतता रहा। घटनाएँ घटती रहीं। वह लड़का अपने उद्देश्य के लिए दिन-रात काम करता रहा। उसमें दीवानों-जैसा साहस था। वह प्राणों पर खेलकर अपने लिए रास्ता बनाता रहा। एक दिन ऐसा आया, जब वह लड़का बड़े साम्राज्य का कर्ता-धर्ता बना।
कुछ लोग कहते हैं कि ये संयोग की घटनाएँ हैं जिनके कारण कोई गिरता है और कोई उठता है, किन्तु सत्य इसके बिलकुल प्रतिकूल है। जीवन की सभी सफलताएँ इस तथ्य से संबद्ध हैं कि आपके जीवन का उद्देश्य क्या है और आप उसके लिए कितना संघर्ष करते हैं। यों तो हर मनुष्य के सामने कोई-न-कोई उद्देश्य होता है और न होना चाहिए, किन्तु जीवन में सम्मान उसे मिलता है जिसका उद्देश्य महान्, उच्च और प्राणवान् होता है। वास्तव में लक्ष्य का निश्चय हमारा अवचेतन करता है। अवचेतन में लक्ष्य जितना रचा-बसा होगा, उतना ही उत्साह तीव्र होगा।
प्रत्येक व्यक्ति एक राह पर चलता है, पर वह यह नहीं जानता कि उसका गन्तव्य क्या है।
उद्देश्य के पीछे अवचेतन का महत्त्व
हम एक निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए चेतन रूप में संघर्ष नहीं करते। हम अपने-आपको धोखा देते हैं। हम अपने असली उद्देश्य से हटकर उन राहों पर चल निकलते हैं जो हमें कहीं और ही पहुँचा ही देती हैं। यदि कोई व्यक्ति यह चाहता है कि वह एक अच्छा पिता बने, किन्तु वह अपने पुत्र के लिए कोई समय नहीं निकालता, उसके कामों और उसकी बातों में कोई रुचि नहीं लेता तो हम विश्वास से कह सकते हैं कि उसके सामने कोई अन्य ही उद्देश्य है। उसका लक्ष्य एक अच्छा पिता बनकर दिखाना नहीं है। यदि एक आदमी यह दावा करे कि उसके जीवन का उद्देश्य महान् लेखक और विद्वान बनना है और वह अपना अधिकांश समय बेकार मनोविनोद आदि में ही लगाता रहे तो यह कैसे सम्भव है कि वह अपने उद्देश्य को पाने में सफल हो जाए।
यह सच है कि जिन वस्तुओं को हम मन से पसन्द करते हैं, उनके लिए हमारे पास सदा बहुत-सा समय निकल आता है और हमें कभी यह शिकायत नहीं कहनी पड़ती कि हमारी शक्तियाँ जवाब दे चुकी हैं। यदि आप सदा सफलता का मुँह देखते हैं तो आप समझ लीजिए कि आपका अवचेतन आपको चोरी-चोरी किसी अन्य गन्तव्य की ओर खींच रहा है। जब आपका चेतन और अवचेतन आपसी द्वन्द्व से ग्रस्त हो जाते हैं तो आप शीघ्र थक जाते हैं। अपनी शक्ति को बुद्धिमता से उपयोग में लाने के लिए अपने चेतन और अवचेतन के उद्देश्यों के बीच एकरसता उत्पन्न करना सबसे अधिक आवश्यक है।
अपने-आपसे प्रश्न कीजिए कि वे कौन-सी रुचियाँ हैं जिनकी ओर आप गंभीरता से खींचे चले जाते हैं ? वे कौन से काम हैं जो आपके लिए सबसे अधिक चित्ताकर्षक हैं ? किन हंगामों में आप अपने समय का अधिक भाग व्यय करते हैं ? एक चार्ट बनाइए, जिसमें सप्ताह-भर की रिपोर्ट लिखिए कि आपने अपने मूल्यवान् क्षणों को किस प्रकार व्यय किया ? कितने घण्टे आपने किस काम में लगाए ? वह काम जो आपने गम्भीरता से किया और जिस पर आपने समय का असाधारण भाग व्यय किया, वही आपका असली और अवचेतन उद्देश्य है।
डॉक्टर सिगमंड़ फ्रायड की रुचियों का केन्द्र यह था कि किसी प्रकार मनुष्य की गोपनीय प्रेरणाओं का पता लगाया जाए। डॉक्टर एलबर्ट श्विट्जर ने अपनी सारी शक्तियों को अफ्रीका-निवासियों के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उसके कई मित्रों ने उसके उद्देश्य को हास्यपद घोषित किया और कहा कि ‘‘डॉक्टर श्विटज़र का उदाहरण उस जनरल जैसा है जो दहाड़ती और आग बरसाती तोपों के सामने अपनी इकलौती राइफ़ल लेकर मुकाबले के लिए खड़ा हो जाए। आप अन्य लोगों को इस बात पर तैयार क्यों नहीं करते कि वे मैदान में आएँ और अफ्रीकी हब्शियों की सहायता करें ? आप अकेले इतना बड़ा काम कैसे कर सकते हैं ?’’ किन्तु डॉक्टर श्विटज़र समझता था कि वह क्या करना चाहता है। उसे अपने उद्देश्य का भली-भाँति ज्ञान था, अत: वह अपने महान् उद्देश्यों में सफल हुआ। उसने अफ्रीका के पिछड़े हुए। काले रंग और अभागे लोगों में विद्या का दीप जलाया जो आज भी जल रहा है।
उत्कट इच्छा उद्देश्य में साधक
यदि तुम तीव्रता के साथ किसी वस्तु की इच्छा करते हैं तो वह सचमुच हमें मिल जाती है। और यदि हमने किसी वस्तु या पद की इच्छा तो की और वह हमें न मिल सकी तो विश्वास कीजिए कि हमारी इच्छा में कमी रह गई है। हमने अपने मन, प्राण की सम्पूर्ण शक्तियों का उसकी प्राप्ति के लिए उपयोग नहीं किया। कल्पना-चक्षुओं ने उस महान् व्यक्ति का रेखाचित्र ही तैयार नहीं किया जो आप बनना चाहते थे। इसलिए आप उस उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकें। आपकी इच्छा इतनी दुर्बल थी कि वह अन्य दिलचस्पियों का शिकार होकर रह गई।
अपने हृदय की आवाज़ को ध्यान से सुनिए। यह आवाज़ आपको सपने में सुनाई देगी। आप बैठे-बैठे मदहोश हो जाएँगे, जैसे सो गए हों और आपका अवचेतन आपको बताएगा कि आप सचमुच क्या चाहते हैं। एक उन्मत्त अवस्था के कारण अवचेतन की आवाज़ आएगी और आपके छिपे हुए उद्देश्य को उजागर करके आपके सामने स्पष्ट रूप में प्रस्तुत कर देगी। फिर आपकी सारी शक्तियाँ उस आवाज़ के नेतृत्व में आपको आगे लिये चली जाएँगी।
डॉक्टर हेवलाक एलिस जिसने मनोविज्ञान पर कई प्रसिद्ध पुस्तकें लिखकर नाम कमाया है, जब नवयुवक था तो उसकी विचित्र अवस्था थी। उसकी समझ में नहीं आता था कि वह किस व्यवसाय के लिए उपयुक्त रहेगा। कभी धर्म के प्रचार का बीड़ा उठा लेता तो कभी विधान-विशेषज्ञ बन जाना चाहता था। आखिर उसने गिरजों की विश्व संस्था में प्रवेश कर लिया। पादरी बनकर आस्ट्रेलिया में खूब भाषण किए, पर हृदय सन्तुष्ट न हुआ और कानून की शिक्षा प्राप्त करने का निश्चय किया।
वह एक दिन काम से उकताकर एक बेंच पर लेटा हुआ था और एक साधारण पुस्तक पढ़ने में मग्न था। लेटकर पढ़ने में उसे बड़ा मज़ा आता था और ध्यान भी केन्द्रित रहता था। वह एक व्यक्ति के जीवन की कहानी थी। पुस्तक पढ़ते वह सहसा चौंक गया। बिजली की तरह उठा और इधर-उधर चक्कर लगाने लगा। उसकी मुट्ठियाँ भिंच गईं। वह तुरन्त समझ गया। एक सम्मोहक अवस्था के कारण उसके अवचेतन ने उसे बताया कि वह डॉक्टर बनना चाहता था। उसका यह ज्ञान और विश्वास इतना पूर्ण था कि एक क्षण के लिए भी उसे इस पर सन्देह न हुआ। यह उसके हृदय की आवाज़ थी और वह उसे ध्यान से सुन रहा था। कई वर्ष बाद उसे पता चला कि उसके अवचेतन ने उसके लिए डॉक्टर का व्यवसाय क्यों चुन रखा था क्योंकि यही व्यवसाय उस विशेष उद्देश्य के लिए सबसे उपयुक्त था जो उसका असली जीवन-लक्ष्य था अर्थात् मनोविज्ञान के बारे में पुस्तकें लिखना।
उद्देश्य के लिए तड़प उत्पन्न कीजिए
जब तक आप अपने उद्देश्य के लिए दीवाने नहीं होंगे, समझ लीजिए, आपकी इच्छा बिलकुल निर्जीव इरादे जैसी है जो किसी समय भी सन्देह की आँधियों में दब सकती है। यदि आप उद्देश्य को कल्पना-चक्षुओं से नहीं देख सके और इच्छा की चिंगारी भड़ककर लपट नहीं बन सकी और उठते-बैठते, सोते-जागते आपका लक्ष्य आपके सामने नहीं है और यदि अपने समय का अधिकांश समय आप जीवनोद्देश्य की इच्छा को सुदृढ़ करने में व्यय नहीं करते तो आप निश्चय ही सफल नहीं होंगे।
अपने जीवन-लक्ष्य को ओढ़ना-बिछौना बना लीजिए। अपने उद्देश्य की कल्पना आपके मस्तिष्क में रच-बस जाए तो समझ लीजिए कि आपके सफलता से साक्षात्कार होंगे। उत्तर यह है कि उद्देश्यों को लिख लिया जाए, जो बात लिखित में आती है, वह मस्तिष्क पर चिरस्थायी चिह्न छोड़ती है। इन लिखित उद्देश्यों को कई बार पढ़िए। यदि सम्भव हो तो हर रोज़ सुबह-शाम कुछ मिनट के लिए उस महान उद्देश्य और उच्च जीवन लक्ष्य को दोहरा लीजिए। लिखे हुए शब्द आग्नेय रूप धारण करके आपके हृदय में उतर जाएँ तो जान लीजिए कि आपकी इच्छा सुदृढ़ हो गई है।
आपका उद्देश्य आपको अवश्य प्राप्त हो जाएगा। सोने से पहले अपने-आपसे कहिए, मैं इस उद्देश्य के लिए हर सम्भव और आवश्यक पग उठाऊँगा। उसकी प्राप्ति के लिए मन, प्राण की सम्पूर्ण शक्तियों से काम लूँगा। जितने बलिदान देने पड़ें, देता चला जाऊँगा। जब आप इन शब्दों को बार-बार दोहराएँ तो सपने में भी कभी-कभी मस्तिष्क पर उजले अक्षर के रूप में अंकित हो जाएगा। कभी एक तस्वीर-सी सामने आ जाएगी जिसमें आप उस दशा में होंगे, मानो आपका उद्देश्य आपको प्राप्त हो चुका है।
यदि आप अपने अवचेतन को विश्वास दिला दें कि आप सचमुच किसी एक उद्देश्य के लिए दीवाने हो रहे हैं तो वह आपका मित्र बन जाएगा। वह आपके लिए काम की चिन्ता में होगा कि किस प्रकार आप अपने गन्तव्य तक पहुँचेंगे।